Friday, September 28, 2018

सरकार-एक पालक

गुलामी की जंजीरों से बंधे हुए हिंदुस्तान में जब आजादी की महक आनी शुरू हुई तभी "शिखर" पर बने रहने की इस लड़ाई ने एक जहर भी घोलना शुरू दिया जिसकी नींव आजादी के कई साल पहले अंग्रेजों ने अपनी सत्ता व मालिकाना को बरकरार रखने के लिए रखी थी अर्थात भारतीयों को धर्म के आधार पर विभाजित करना।यह प्रयोग सफल रहा और जो हिंदुस्तानी कबीर के दोहे व मीरा भजन से आपस में घुले मिले थे उसे पाश्चात्य परंपरा ने पूरी तरह विखंडित कर दिया,लोग एक दूसरे के सम्मान की बजाय "मैं-मेरा" पर ज्यादा यकीन करने लगे।धर्म-पंथ के आधार पर हम बंट चुके थे और ऐसा ही एक बंटवारा जाति के आधार पर "पूना पेक्ट" के बाद देखने को मिला।अंततः जब आजादी मिली तब पटेल-नेहरू के समक्ष सबसे बड़ी समस्या देश को और विखंडन से ना केवल बचाना था बल्कि सबको एक धागे में मोतियों की माला के समान पिरोना भी था और तब महात्मा गांधी जी ने सुझाव दिया कि देश के लोकतांत्रिक "ग्रंथ" को रचने की जिम्मेदारी ऐसे समाज के प्रतिनिधिकर्ता को सौंपी जाये जिसे ना केवल अछूत मानकर एक कोने में समेट दिया गया है बल्कि जिनका मानसिक विकास भी सीमित रह गया है।अतः इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार थे बाबा साहब अंबेडकर जो ना केवल तब के उच्च वर्ग के प्रतीक "सूट-बूट" को पहनते थे बल्कि स्वयं ऐसे समाज से आते थे जिनके लिए ना कोई कुएं थे ना ताल।
उन्होंने ना केवल एक आदर्श संविधान बनाया बल्कि ऐसा प्रावधान भी रखा जिससे किसी वर्ग को तकलीफ ना हो अतः सही मायने में सरकार ने एक पालक की भूमिका निभाई,ऐसे माता-पिता की जिसने ना सिर्फ घर के बड़े पुत्र को अपने छोटे पुत्र के संरक्षण की जिम्मेदारी दी बल्कि छोटे पुत्र को भी बड़े के प्रति सम्मान सिखाया।
फिर अब ऐसा क्या हुआ कि बरसों से एक साथ रहने वाले दोनों भाईयों में फूट पड़ रही है?क्या सरकार भेदभाव कर रही है?जबाब होगा बिल्कुल नहीं।उदाहरण के लिए मेरा एक बड़ा भाई है मुझे लगता है कि वो बड़ा है(उच्च) है अतः माता-पिता उसे ज्यादा प्यार करते हैं और वो ये सोचते हैं कि चूंकि मैं छोटा(निम्न) हूं इसलिए मुझे ज्यादा लाड़-सम्मान मिलता है।लेकिन क्या इसमें किंचित मात्र भी सत्य है?
नहीं बिल्कुल नहीं क्योंकि माता पिता के लिए उनकी दोनों संतानें एक समान हैं यदि किसी एक को कभी ज्यादा प्यार मिल रहा है तो उसका मतलब दूसरे का तिरस्कार नहीं है और ये बात दोनों भाईयों को भी समझना चाहिए।सरकार भी पालक की भूमिका में रहती हैं और सभी वर्ग उसकी संतानें हैं जिनमें भेदभाव के बारे में वो सोच भी नहीं सकती अतः जरूरी है कि सभी वर्ग सौहार्द से रहें वर्ना घर का नाश निश्चित है।